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हार की जीत
“हार की जीत” सुदर्शन की एक प्रसिद्ध कहानी है जो आत्म-संयम, आत्म-बल और सच्ची सफलता के महत्त्व को दर्शाती है। इस कहानी के दो मुख्य पात्र हैं: स्वामी शरण, एक साधु जो आत्म-ज्ञान और तपस्या में लीन हैं, और उनका शिष्य सोहन। कहानी ऐसे समय में स्थापित है जब समाज में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का गहरा महत्त्व था।
कहानी का सारांश:
कहानी की शुरुआत स्वामी शरण से होती है, जो एक बुद्धिमान और निस्वार्थ साधु हैं। उन्होंने सांसारिक सुखों को त्यागकर एक आध्यात्मिक जीवन को अपनाया है। एक दिन, उनका शिष्य सोहन उनके पास आता है और जीवन की असफलताओं से हताश होकर मार्गदर्शन मांगता है। सोहन जानना चाहता है कि वह हार का सामना कैसे करे और सच्ची सफलता कैसे प्राप्त करे। स्वामी शरण उसे समझाते हैं कि सच्ची जीत हमेशा दूसरों पर विजय पाने में नहीं होती, बल्कि अपनी कमजोरियों पर विजय पाने में होती है।
इसके बाद स्वामी शरण उसे अपनी युवावस्था की एक घटना सुनाते हैं। जब वे युवा थे, तब उन्हें एक सुंदर लड़की कमला से गहरा प्रेम हो गया था। लेकिन कमला एक घातक बीमारी से ग्रसित हो गई। स्वामी शरण ने अपनी इच्छाओं और भावनाओं को त्यागकर कमला की सेवा और देखभाल में खुद को समर्पित कर दिया। अंततः कमला का देहांत हो गया, लेकिन स्वामी शरण ने इस अनुभव को हार नहीं, बल्कि अपनी आत्मा की जीत के रूप में देखा। उन्होंने अपने भावनाओं पर विजय पाई और निःस्वार्थ प्रेम…